शनिवार, 27 सितंबर 2008

भारत आपका भी है ।

शुक्रवार, दिन के ग्यारह बजे होंगे। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और दिल्ली पुलिस की कई गाड़ियां दिल्ली की चौड़ी सड़को पर रफ्तार भरती हुई बटला हाउस के संकरी गलियों में आ पहुंची थी । इसके बाद जो कुछ हुआ वो सबने देखा। इसके अलावा जो कुछ हुआ उसकी चर्चा किसी ने नहीं की ।कुछ चैनलों ने हल्की नज़र डाली ,पर उतना ही जितना की धर्मनिरपेक्ष सरकार को बुरा न लगे । स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर एम सी शर्मा आतंकियों की गोली से घायल थे। कुछ पुलिस वाले उन्हें सहारा देकर एल 18 से नीचे लाए । दिल्ली पुलिस संकरी गलियों में पोजिशन ले चुकी थी ।एम सी शर्मा को लगी गोली इस बात को पुख्ता कर दिया की बटला हाउस के एल 18 में सब कुछ सही नहीं है। पुलिस अपनी जान पर खेल रही थी । पुलिस को लगा होगा कि उसके दुश्मन सिर्फ एल 18 में ही है ,पर जल्द ही उसे एहसास हो गया की वह चारों ओर से दुश्मनों से घिर चुकी है। एक दुश्मन जो एल 18 में छुपे थे तो दूसरे बटला के गलियों में जांबाज पुलिस वालों के खिलाफ़ अफवाहों का बाज़ार गर्म कर रहे थे। देखते ही देखते हज़ारों की भीड़ जमा हो गई और पुलिस के खिलाफ़ नारे बुलंद होने लगे। मैं जामिया मिल्लिया का छात्र रहा हूं ।वहीं से मास कम्युनिकेशन किया। कई बार मौका मिला था बटला हाउस के तंग गलियों से गुजरने का । कई दोस्त रहते है। कई बार गुजरते, आते -जाते इन तंग गलियों को समझने की कोशिश की थी। दावे के साथ कह सकता हूं कि यहां की बड़ी आबादी अन्य मुसलमान से ज्यादा पढ़े लिखे और शिक्षित हैं । पर भारत की हार और पाकिस्तान की जीत पर यहां भी जश्न मनता है, जैसे देश के अन्य पिछड़े मुस्लिम इलाकों में होता है ।आतंकियों से मुक़ाबला करने आई पुलिस, लगा इस बात के लिए तैय़ार थी। पुलिस दो टीमों में बंट गई एक एल 18 में मौजूद दुश्मनों को निशाने पर ले लिया तो दूसरी ने भीड़ को थाम लिया पर पुलिस के खि़लाफ़ आवाज़ कम न होनी था और न हुई। भीड़ में खड़े जितने लोग उतनी बातें । किसी ने कहा इंकाउंटर फर्जी है ,किसी ने कहा रमाजान के पाक दिन में मुस्लमानों पर अत्याचार हो रहें है ,किसी ने कहा काफिरों की हमारे विरुद्ध साजिश है । इन सब के बीच इस्लाम बुलंद नारों से अमर हो रहा था। पुलिस के साथ साथ पत्रकारों को भी रोकने की पूरी कोशिश की गई । गुस्साए रिपोर्टर ने एक मौलवी साहेब के मुंह में गन माइक डाल दिया पूछा नाराज़गी किस बात की है। मौलवी साहेब को लगा मौका यहीं है जमात की जनमत हासिल करने का । लगें भाषण के साथ साथ भड़ास निकालने। उपर के सारे सवाल एक ही सांस में पूछ डाले। रमजान के पाक महीने का वास्ता दिलाने लगे। अब बारी रिपोर्टर महोदय की थी ।शूट करने में परेशानी हो रही थी ।चैनल से आ रहे कॉल मोबाइल को परेशान कर रहे थे और मोबाइल रिपोर्टर को । रिपोर्टर ने पूछा दिल्ली में धमाके रमजान के पाक महीने में नहीं हुए थे क्या । इनकाउंटर फर्जी है तो क्या इंस्पेक्टर ने ख़ुद को गोली मार ली ।और काफीर कौन ,पुलिस या हिन्दू । दोनों हिन्दुस्तान मे ही रहते है । पाकिस्तान में नहीं ।मौलवी साहेब को सांप सूंघ गया ।मौके की नज़ाकत को नफासत से समझा ।लेकिन पूरी मुठभेड़ के दौरान पुलिस के खिलाफ़ नारे लगते रहे ।एम सी शर्मा होली फैमेली अस्पताल में मौत से जुझते रहे किसी मुस्लिम नेता ने उस जाबाज़ पुलिस अधिकारी की सुध नहीं ली ।मौत से हारने के बाद भी नहीं ।बात अलग है कि मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों के शव को दफनाने के लिए बटला हाउस की कब्रगाह इंतजार कर रहा था। मेरे जेहन में सवाल उठे आतंकी किसी मजहब के नहीं होते तो रमजान का महीना कहां से आ गया। आतंकवादी यदि आतंकी ही होते हैं, तो मोहन चंद शर्मा की अस्थि पर फूल नहीं डालने वाले आतंकियों के शव के लिए कब्र खोद कर इंतजार क्यों करते रहे । अन्त में मै समझ नहीं पा रहा था कब्रिस्तान में नारे लग रहे थे जब तक सूरज चांद रहेगा -------------- तेरा नाम रहेगा । तो यही नारा निगम बोधघाट पर भी लग रहे थे । जामिया के वी सी मुशीरुल हसन साहब गिरफ्तार आतंकियों को कानूनी सहायता उपलब्थ कराएंगे ,मुशिरुल साहब समय मिले तो एस सी शर्मा के घर पर जाकर श्रद्धा के दो फूल चढा आना। कुछ मुस्लमानों ने ऐसा किया है उनको मेरी ओर से साधुवाद। शर्म की कोई बात नहीं आतंकियों की सहायता से तो ये पुण्य काम है ।आखिर भारत आप सब का भी तो है ।जामिया की छवि से ज्यादा जरुरी है भारत की छवि बचाने की

1 टिप्पणी:

rahul ने कहा…

अच्छी बौद्धिक पेचिश है....